सपने में जीभ पर देवी लिख जाती थी अजीब फॉर्मूले:पत्नी साथ रहती तो ज्यादा जीते महान गणितज्ञ रामानुजन; जन्मदिन पर रोचक किस्से

22 दिसंबर 1887 यानी आज से ठीक 138 साल पहले। मद्रास प्रेसीडेंसी के ईरोड तालुका में एक बच्चे का जन्म हुआ। कुछ ही साल बाद इस बच्चे ने कुछ ऐसा किया कि दिग्गज विदेशी गणितज्ञ तक कह उठे- ये सदियों में पैदा होने वाला जीनियस है। उस जीनियस के सपने में एक देवी आती थीं और जीभ पर गणित के इक्वेशन लिख कर जाती थीं। वो जीनियस ईश्वर, शून्य और अनंत से बातें करता था। ये कहानी है महान गणितज्ञ रामानुजन की… रामानुजन बचपन से ही जिद्दी और कम बोलते थे। जब तक मंदिर में दर्शन नहीं कर लेते, खाना नहीं खाते थे। उन्हें स्कूल जाना पसंद नहीं था। ऐसे में पड़ोसी पुलिस कॉन्स्टेबल को उन्हें धमकाने के लिए बुलाया जाता था। रामानुजन को खेलकूद नहीं, सवाल पसंद थे। जैसे दुनिया में जन्म लेने वाला पहला इंसान कौन था, बादल धरती से कितनी दूर होंगे। एक बार मैथ्स टीचर पढ़ा रहे थे कि किसी संख्या को उसी संख्या से भाग दिया जाए तो उत्तर हमेशा 1 ही होगा। छोटे से रामानुजन ने टीचर से पूछा कि अगर शून्य को शून्य से भाग दिया जाए तो भी क्या उत्तर एक ही होगा? 10 साल की उम्र में प्राइमरी परीक्षा में रामानुजन ने पूरे जिले में टॉप किया। 11 साल की उम्र में वो एस एल लोनी की ट्रिगनोमेट्री जैसी गणित की किताबें सॉल्व करने लगे। 13 की उम्र में कॉलेज स्टूडेंट्स को ट्यूशन देने लगे। देवी नामगिरी जीभ पर लिखती थीं मैथ्स के इक्वेशन रामानुजन एक बेहद सामान्य परिवार से थे। उनके पिता कुंभकोणम तालुका में कपड़े की दुकान में काम करते और मां गृहिणी थीं। उनकी मां और नानी नामगिरी देवी की बहुत बड़ी भक्त थीं। दोनों मानती थीं कि देवी की कृपा से ही रामानुजन का जन्म हुआ था। नानी कहतीं कि देवी नामगिरी उनकी बेटी के बेटे के जरिए बोलेंगी। दरअसल, नामगिरी देवी को लक्ष्मी का रूप माना जाता है। उन्हें ‘नामगिरी थयार’ भी कहा जाता है। तमिलनाडु के नामगिरी क्षेत्र में उनका मंदिर है, जहां उन्हें भविष्यवाणी और समाधान देने वाली शक्ति मानकर पूजा जाता है। रामानुजन दोस्तों से कहते कि देवी उनके सपने में आती और उनके जीभ पर मैथ्स के इक्वेशन लिख जाती थीं। 1903 में ट्यूशन पढ़ने वाले बच्चों ने उन्हें एक किताब दी, जिसका नाम था ‘ए सिनोप्सिस ऑफ एलीमेंट्री रिजल्ट्स इन प्योर एंड एप्लाइड मैथमेटिक्स’। इस किताब में गणित के करीब 5000 फॉर्मूला और थ्योरम थे। ये किताब रामानुजन के लिए देवी का सबसे बड़ा आशीर्वाद साबित हुई। गणित के चलते कॉलेज के पहले साल में 4 बार फेल हुए जब रामानुजन 15 साल के थे, तब उन्हें एक किताब मिली। ये किताब इंग्लैंड के मशहूर मैथ्स टीचर शूब्रिज कार की थी। रामानुजन को नहीं पता था कि ऑक्सफोर्ड और कैंब्रिज जैसी यूनिवर्सिटीज के एंट्रेंस एग्जाम पास करने के लिए इस किताब की जरूरत होती है। रामानुजन ने इस किताब को न सिर्फ पढ़ा, बल्कि इसमें दिए फॉर्मूलों से अपने नए फॉर्मूला बनाने लगे। धीरे-धीरे मैथ्स में उन्हें इतना मजा आने लगा कि बाकी सब्जेक्ट्स उन्होंने पढ़ने बंद कर दिए। कई बार फेल होने के बाद रामानुजन के पिता ने पैसे देने बंद कर दिए। उनके पास लिखने के लिए पन्ने खरीदने के भी पैसे नहीं होते। लिहाजा वे स्लेट पर चॉक से लिखते और कोहनी से मिटाते। जब एक दोस्त ने उन्हें जीनियस कहा तो उन्होंने कोहनी दिखाते हुए कहा कि जीनियस तो उनकी कोहनी है, जो सरपट स्लेट मिटा कर लिखने की जगह तैयार कर देती है। 1908 से 1912 तक रामानुजन का परिवार और उनके दोस्त मदद करते रहे। वो सपने में भी फॉर्मूले बड़बड़ाते। एक बार उनके दोस्त ने बड़बड़ाने पर रामानुजन के मुंह पर ठंडा पानी उड़ेल दिया। मजाक में रामानुजन ने कहा, ‘ओहो! गंगा स्नानम? एक बार और मिलेगा क्या?’ रामानुजन वेद, उपनिषद, गीता और पुराणों के ज्ञाता थे। उन्हें लगा कि गृहस्थ आश्रम के कर्तव्य निभाने के लिए उन्हें नौकरी करनी पड़ेगी। उन्होंने घर छोड़ दिया और दोस्तों के साथ रहने लगे। रामानुजन के दोस्त और उनके गणित के प्रोफेसरों ने उनके लिए अंग्रेज अफसरों से सिफारिश की। 1910 में तिरुकोईलूर के डिप्टी कलेक्टर वी रामास्वामी अय्यर ने ‘इंडियन मैथमेटिकल सोसायटी’ शुरू की। रामानुजन उनके पास अपने फार्मूले और थ्योरम दिखाने गए। अय्यर ने रामानुजन का नोटबुक नेल्लोर के कलेक्टर और मैथमेटिकल सोसायटी के सेक्रेटरी रामचंद्र राव को दिखाया। 1911 से कलेक्टर राव ने रामानुजन को इस शर्त पर 25 रुपए महीना देना शुरू किया, कि वे मद्रास यूनिवर्सिटी के पास रहेंगे और गणित पर ध्यान देंगे। सोसाइटी के जर्नल में अपना रिसर्च पब्लिश करने का मौका रामानुजन को इसी साल मिला। 4 बार बीए फर्स्ट ईयर में फेल होने के बाद भी जर्नल्स में पेपर छपने से रामानुजन मद्रास के आसपास मशहूर हो गए। रामचंद्र राव और उनके दोस्तों के कहने पर रामानुजन ने 1912 में पार्ट ट्रस्ट ऑफ इंडिया में क्लर्क की नौकरी करने लगे। इस बीच उन्होंने ट्रिनिटी कॉलेज के प्रोफेसर और महान मैथेमेटिशियन जी. एच. हार्डी को एक लेटर लिखा। इंग्लैंड में रह रहे हार्डी ने जब लेटर खोला, तो पहले पन्ने पर अजीब फॉर्मूले दिखे। उन्हें देखकर हार्डी को लगा कि किसी सनकी आदमी ने लेटर भेजा है। हालांकि जब उन्होंने लेटर को ध्यान से पढ़ा, तो उनकी राय पूरी तरह बदल गई। आखिरी पन्ने पर लिखे कंटिन्यू फ्रैक्शन के बारे में हार्डी बाद में लिखा- उन्होंने मुझे पूरी तरह हरा दिया। मैंने जीवन में ऐसी चीजें कभी नहीं देखीं। ये फॉर्मूले सच ही होंगे, क्योंकि अगर ये सच न होते, तो इन्हें कल्पना करके कोई बना ही नहीं सकता था।
इसके बाद हार्डी ने रामानुजन को तुरंत इंग्लैंड बुलाया, लेकिन ब्राह्मण होने के कारण उनका समुद्र पार करना धार्मिक रूप से वर्जित था। इसलिए रामानुजन की मां ने उन्हें इंग्लैंड जाने से मना कर दिया। फिर एक रात रामानुजन के सपने में नामगिरी देवी ने उन्हें इंग्लैंड जाने का आशीर्वाद दिया। ऐसा ही सपना रामानुजन की मां को भी आया। इसके बाद मां ने उन्हें जाने की इजाजत दे दी। विदेश में शाकाहारी खाना बना सबसे बड़ी चुनौती 1914 में इंग्लैंड जाने के बाद रामानुजन के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी रोज शाकाहारी खाना ना मिलना। पहला विश्व युद्ध चल रहा था, माहौल तनावपूर्ण था और हर चीज पर सख्ती थी। उनके लिए शुद्ध शाकाहारी भोजन लगभग असंभव हो गया था। जिसके कारण रामानुजन को कई बार अस्पताल में भर्ती तक होना पड़ा। इंग्लैंड में उनके पास चावल और केले के अलावा कुछ भी ठीक खाने का विकल्प नहीं था। रामानुजन कुछ दिन के लिए लंदन में भारतीयों के लिए बने एक लॉज में रह रहे थे। नाश्ते में उन्होंने ओवल्टीन नाम का एक ड्रिंक पी लिया, जिसे शाकाहारी बताया गया था। जब उन्होंने उसकी डिब्बा ध्यान से देखा तो उन्हें पता चला कि उसमें एनिमल प्रोडक्ट मिला हुआ था। यह जानकर वे बहुत परेशान और दुखी हो गए। उन्होंने तुरंत अपना सामान पैक किया और उसी वक्त वहां से निकल पड़े। जब रामानुजन ने सुसाइड की कोशिश की 1918 फरवरी में, लंदन के एक रेलवे स्टेशन पर रामानुजन ने ट्रेन के सामने कूद कर जान देने की कोशिश की। एक गार्ड ने उन्हें कूदते देख तुरंत ऊपर खींच लिया। रामानुजन बच तो गए, लेकिन बुरी तरह घायल हो गए। पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। जब हार्डी वहां पहुंचे, तो उन्होंने जोर देकर पुलिस से कहा कि उनके सामने खड़े व्यक्ति ‘रॉयल सोसाइटी के फेलो श्रीनिवास रामानुजन​​​’ हैं। उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। हालांकि उस वक्त रामानुजन रॉयल सोसाइटी के फेलो नहीं थे। लेकिन जांच में जब पुलिस को पता चला की वो एक मशहूर मैथमेटिशियन हैं तो पुलिस ने उन्हें छोड़ दिया। रामानुजन ने ऐसा कदम आखिर क्यों उठाया? इसका कारण किसी को ठीक-ठीक नहीं पता। लेकिन लोगों का मानना है कि रामानुजन की मां और पत्नी में झगड़े होने लगे थे और उनकी पत्नी घर छोड़ कर मायके जा चुकी थी। ट्रिनिटी कॉलेज में रामानुजन एक गणित की क्लास में थे और प्रोफेसर आर्थर बैरी बोर्ड पर एक थ्योरम समझा रहे थे। सब नोट्स बना रहे थे, लेकिन रामानुजन बिना नोट्स बनाए सिर्फ बोर्ड पर देख रहे थे। प्रोफेसर के पूछने पर रामानुजन ने कहा कि वो बोर्ड पर आगे का इक्वेशन लिख सकते हें। रामानुजन ने इक्वेशन पूरा कर दिया। प्रोफेसर हैरान थे, क्योंकि वे आगे का इक्वेशन खुद ही प्रूव नहीं कर पाए थे। उनके सामने सवाल था कि रामानुजन को कैसे पता चला? 1916 में ट्रिनिटी कॉलेज ने रामानुजन को बिना किसी एग्जाम के ‘बीए इन रिसर्च’ की डिग्री अवॉर्ड कर दी। तब तक वो 16 पेपर पब्लिश कर चुके थे। अगले साल मद्रास यूनिवर्सिटी ने उन्हें मैथ का प्रोफेसर बना दिया और 400 रुपए महीना सैलरी देने लगे। 1918 में रामानुजन को रॉयल सोसाइटी का फेलो बना दिया गया। वो सोसाइटी के सबसे कम उम्र के फेलो बने। इसी साल ट्रिनिटी कॉलेज ने भी उन्हें फेलो बना दिया। रामानुजन को ट्रिनिटी कॉलेज और मद्रास यूनिवर्सिटी से करीब 7000 रुपए सालाना स्कॉलरशिप मिलने लगी। उन्होंने मद्रास यूनिवर्सिटी को लेटर लिखा कि उन्हें इतने पैसों की जरूरत नहीं है। स्कॉलरशिप के पैसों में से कुछ गरीब स्टूडेंट्स को रिसर्च के लिए अवॉर्ड होने चाहिए। आखिर में जानिए 1729 नंबर की कहानी 1919 में हार्डी, टीबी की बीमारी से जूझ रहे रामानुजन से मिलने अस्पताल गए थे। हार्डी जिस टैक्सी से आए थे उसका नंबर था 1729, जिसे उन्होंने काफी बोरिंग नंबर बताया। तब रामानुजन ने कहा, ‘नहीं, ये तो बेहद खूबसूरत नंबर है। ये सबसे छोटा नंबर है, जिसे दो तरीके से दो क्यूब को जोड़ कर बनाया जा सकता है।’ उनकी आखिरी खोज मॉक थीटा फंक्शन है, जो आज मॉडर्न क्वांटम फिजिक्स का मूल आधार बन चुकी है। इसके अलावा रामानुजन के दो सबसे असरदार काम हैं, जिन्हें क्यू सीरीज और पार्टीशन कहा जाता है। उनके कुल 37 रिसर्च पेपर छपे हैं। आज कैंसर से लेकर एटॉमिक एनर्जी, स्पेस, क्रिप्टोलॉजी, ब्लैक होल थ्योरी और स्टैटिस्टिकल मैकेनिक्स की रिसर्च में रामानुजन के थ्योरम और फॉर्मूला इस्तेमाल किए जाते हैं। 1919 में रामानुजन भारत वापस आ गए। मायके में रह रहीं पत्नी जानकी को खत लिख कर रामानुजन ने वापस घर बुलवाया। वो तब 18 साल की थीं। उन्हें पता चला कि उनकी मां ने जानकी के लिखे लेटर को कभी पोस्ट ही नहीं होने दिया। रामानुजन ने कहा, ‘अगर जानकी मेरे साथ इंग्लैंड में होती, तो मेरी तबीयत इतनी खराब नहीं होती।’ 26 अप्रैल 1920 को रामानुजन का निधन हो गया। जानकी बताती हैं कि रामानुजन ने उनसे कुछ दिन पहले कहा था- ‘कल रात नामगिरी आई थीं। उन्होंने कहा कि मेरे सूत्र अब दुनिया समझने लगी है। मैंने अपना काम पूरा कर लिया है।’ रामानुजन सिर्फ 32 की उम्र के थे। उनके डॉक्टर चंद्रशेखर का कहना था कि अगर रामानुजन की मां और पत्नी ने आपस में लड़ने की बजाय डॉक्टर का कहा मान कर रामानुजन का ध्यान रखा होता तो उनकी जान बचाई जा सकती थी। रामानुजन ने अपनी हाथ की लकीरें देख कर अपने एक दोस्त को बताया था कि उनका निधन 35 साल की उम्र से पहले हो जाएगा। देवदृष्टि या दिमाग की शक्ति? रामानुजन का विश्वास था कि देवी उनका ‘अनंत’ (Infinity) से संवाद करवाती हैं। उनका कहना था देवी नामगिरी सपने में आकर उनकी जीभ पर इक्वेशन लिख कर जाती है। जिसके बाद रामानुजन उसे पेपर पर उतार लेते थे। किताब में हार्डी लिखते हैं, ‘उसकी गणित में कहीं–कहीं मुझे तर्क दिखता था और कहीं–कहीं मुझे ईश्वर दिखता था।’ जबकि हार्डी खुद नास्तिक थे। रामानुजन जीनियस थे या उनपर दिव्य शक्ति का आशीर्वाद था, इस पर दो पक्ष हैं… आध्यात्मिक पक्ष यह है कि रामानुजन को गणित के हर इक्वेशन में रामानुजन को ईश्वर दिखते थे। 3900 में उनके करीब 90% सूत्र बाद में सही साबित हुए। इतनी सटीकता को वैज्ञानिक ‘दिव्य’ कहते हैं। वहीं कुछ वैज्ञानिक कहते हैं कि ये मैथमेटिकल इंट्यूशनल मिरेकल है, जिसमें दिमाग में हाइपर इंट्यूशन होते हैं और प्रश्न या उत्तर दिमाग में सीधे उभर आते हैं। सच क्या था? यह आज भी दुनिया की बड़ी पहेलियों में से एक है। ———–
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